एक दौर था जब मध्यप्रदेश जनसम्पर्क की तूती सभी राज्यों में गूंजती थी और प्रदेश के जनसम्पर्क की कार्यप्रणाली आपने काम से देश में जानी जाती थी। लेकिन बृहष्ट अधिकारी की जकड में आने के बाद जनसम्पर्क की छबी धीरे धीरे बाजारू हो गयी। 15 साल सत्ता में रही भाजपा ने प्रचार- प्रसार के नाम पर करोडो का बजट दिया लेकिन अधिकारियो ने इसे अपनी जेब भरने के साथ साथ बड़े घरानो को खूब विज्ञापन जारी किये।
लेकिन आज प्रदेश का जनसम्पर्क किस तरह बाजार में उछाल मार रहा है इसका अंदाजा तो आप खुद भी लगा सकते है जनसंपर्क विभाग खुद ही अपने वरिष्ठ अधिकारी की छवि धूमिल करने पर आमादा है । और एक शिकायती पत्र पर बिना जाँच पड़ताल किये वरिष्ठ अधिकारी ने एक अधिकारी के जाँच के आदेश पारित करदिये कुछ असामजिक तत्वों ने एक के बाद एक इस मामले को टूल दे दिया यही नहीं अगर एक अधिकारी की जाँच के लिए शिकायत हुई थी तो उसपर जाँच भी लाज़मी थी पर जाँच सुरु होने से पहले ही और बिना किसी परिणाम के एक वरिष्ठ अधिकारी की इज़्ज़त को इस तरह बाज़ारू बना दिया की आज शायद उस अधिकारी की अंतरात्मा खुद उससे कई सवाल पूछने पर आमदा है।
ये कोई पहला मौका नहीं है की इस तरह विभाग को बाज़ारू बनाया गया हो इसे पहले भी दिग्विजयसिंह और शिवराज सिंह की सरकार के दौरान भी ऐसी ही पर्चेबाजी और झूठी शिकायते जनसम्पर्क के अधिकारियों कि की जाती रही है , कोर्ट, लोकायुक्त, ईओडब्लू से लेकर मंत्रालय तक शिकायतों का गठ्ठा पहुंचता था , पर विभाग 10 रुपये देकर टाइप कराए गए ऐसे फर्जी पत्रों को तरजीह नही देता था ,उल्टे अपने अधिकारी का पक्ष लेता था , पर अब क्या होता जा रहा है इस विभाग को की अपने ही अधिकारियो को बाज़ारू बनाया जा रहा है। वो भी बिना सुबूतों के वैसे ता जिन मुद्दों पर जाँच होनी है वो आज भी ठन्डे बास्ते में पड़े हुए है। भाजपा शासन काल मे सहायक संचालको की जो फर्जी नियुक्तियाँ हुई उसे ये विभाग अथवा विभाग के ठेकेदार भूल गए,
यही नहीं मेरे द्वारा एक वरिष्ठ अधिकारी जो की मुख्यलय में आज भी उसी पद पर है जिस पद पर वर्ष 2012 में थे तबसे लेकर २०१९ तक की इलेक्ट्रॉनिक मिडिया को दिए गए विज्ञापन और उन सभी मिडिया की जानकारी मांगने पर भी प्राप्त नहीं हुई और अधिकारी अपना पल्ला झड़ते नज़र आते है। क्योकि ऐसे अधिकारियो के सरपरस्त इनके उच्च अधिकारी है जिन तक शायद एक हिस्सा भी पहोचता हो जिसकारण इन्हे चुनाव आयोग ने 2018 में मुख्यालय से हटाकर नई तैनाती सागर में दी उसके बाद भी वरिष्ठ और घनिष्ठ ने इन्हे पुनः जिले में बुलाकर मुख्यालय में अटैच कर दोबार इलेक्ट्रॉनिक मिडिया का प्रभार दिया।
लेकिन सवाल ये उठता है की एक वरिष्ठ अधिकारी की कर्तव्य निष्ठा पर एक शिकायती पत्र पर बिना सोच विचारे बिना जाँच किये जाँच के आदेश देना कितना उचित है। एक कर्तव्यनिष्ठ रहे अफसर के बारे में की गई शिकायत पत्र पर बिना सोचे समझे शासन से पत्र जारी करना फिर उसे लीक करना किसी षड्यंत्र का हिस्सा हो सकता है ,इसमें वे लोग शामिल हो सकते है । जिन्हे अब शायद विन्ध में भोपाली पान नहीं मिल रहा है। षड्यंत्र की संरचना और चक्रर्वियू रचने वाले स्वयं ये नहीं जानते की महाभारत के युद्ध में जीत अर्जुन के सत्य की होगी दुर्योधन की एक कमजोरी उसे मौत के मुँह तक लेकर गयी थी ठीक इसी तरह विन्ध में पदस्त और भोपाल में पान चबाते ये अधिकारी ये भूल गए है की वो ६ महा से भोपल में ही है।
जनसम्पर्क विभाग में वैसे तो हमेशा वरिष्ठ अधिकारी अपने लालो चप्पो करने वाले अधिकारियो को ही मुख्य प्रभार देते है और इसकी बन्दर बात चलती रहती है। और ईमानदार अधिकारी या तो कलेक्ट्र के जनसम्पर्क अधिकारी बनादिये जाते है या कृषि मंत्री के बाकि रेवड़ी अपने चापलूसों को दी जाती है जिसमे मुख्य तौरपर क्षेत्र प्रचार, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया , विज्ञापन, प्रेस टूर, फ़िल्म निर्माण शाखा में पदस्थ होने की ललक है ।
हाला की जिस शिकायत पर तत्काल वरिष्ठ ने एक्शन लिया उसे बिना जांचे लिए उस शिकायत पत्र पर शिकायतकर्ता का नाम, पता, संस्था पूरी तरह गलत है जिसकी पुष्टि करवाई जा सकती है । इतना ही नही शिकायतकर्ता ने त्रिलंगा भोपाल के जिस अपने पते का जो पिन कोड 462001 लिखा है , वह भी इस क्षेत्र का न होकर पुराने भोपाल स्थित रॉयल मार्केट डाकघर का है जबकि त्रिलंगा अरेरा कालोनी भोपाल का पिन कोड नम्बर 462016 है । इससे इस बात का पता चलता है कि किसी व्यक्ति ने जानबूझकर न सिर्फ एक अधिकारी के नाम से झूठी शिकायत की बल्कि उसके आत्म सम्मन और प्रतिष्ठा पर सवाल खड़े कर उसे और जनसम्पर्क विभाग को बाज़ारू बना दिया।